Broken Engagement Story: रिद्धिमा ने फोन की स्क्रीन बंद कर दी। मंगनी टूटे अब छह महीने बीत चुके थे, लेकिन वो आज भी आदित्य की चैट पर आखिरी “Seen” लाइन को बार-बार पढ़ती थी। जैसे वही लाइन उस रिश्ते की मौत का आधिकारिक ऐलान हो।
परिवार के सब लोग कहते थे, भूल जाओ रिद्धिमा, जिसने तुम्हें छोड़ दिया, उसके लिए रोना क्यों?
पर प्यार कोई कपड़ा तो है नहीं कि बदल लो। वो आदित्य को बहुत चाहती थी, टूटकर, बिखरकर… और शायद यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी।
मंगनी का दिन और उस रात की खामोशी।
मंगनी का दिन रिद्धिमा के लिए किसी सपने जैसा था। घर में दीप जल रहे थे, रिश्तेदारों की हल्की-हल्की हँसी हवा में गूंज रही थी और रिद्धिमा की मुस्कान को देखकर हर कोई कह रहा था कि अब उसकी दुनिया पूरी हो जाएगी। आदित्य भी उसी तरह मौजूद था, थोड़ा शर्मीला, बड़ी आंखों वाला लड़का, जिस पर रिद्धिमा बरसों से भरोसा करती आई थी। सब कुछ फिल्मी सा लगा, हर फोटो पर लोग तारीफ कर रहे थे और रिद्धिमा की बांह में आदित्य का हाथ गर्म और सच लग रहा था।
लेकिन मंगनी के बस एक हफ्ते बाद रात के सन्नाटे में एक फोन आया जिसने खुशियों की सारी रोशनी को बुझा दिया। फोन पर आदित्य ने जो कहा, वह इतना छोटा वाक्य था कि सुनकर दिमाग झट से उसे भुला नहीं पाया। उसने कहा कि वह आगे नहीं बढ़ सकता। कोई वजह नहीं बताई गई, कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। उसकी आवाज़ में जो दूरी थी, वह रिद्धिमा के भीतर गहराई तक एक तगड़ा झटका दे गया।
टूटने के बाद की पहली दुनिया
उस रात के बाद रिद्धिमा की दुनिया थोड़ा-थोड़ा करके बदलने लगी। बाहर की हँसी उसके कानों में किसी और की लगती थी, रसोई की खुशबू भी अब पुराने वादों की याद दिलाती थी। लोग कहते थे कि समय सब ठीक कर देता है, पर रिद्धिमा के लिए समय केवल एक खाली सा हॉराइजन छोड़कर चलता रहता था। हर सुबह उसकी आँखें उसी उम्मीद से खुलतीं कि शायद फोन पर कोई मैसेज आया होगा, कोई कल का प्लान होगा, कोई “अरे चलो मिल लेते हैं” जैसा संदेश आएगा।
लेकिन फोन शांत रहता और चौबीसों घंटे वही खालीपन धीरे-धीरे उसकी हर छोटी खुशी पर हावी होता गया। उसने अपने आप से सैकड़ों बार कहा कि जो चला गया, वह उसका नहीं था, पर दिल उस तर्क को मानने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था। उसकी सोच की रफ्तार काफी धीमी पड़ गई थी, कोई भी काम करती थी उसमे कोई न कोई रुकावट आ जाता था, और उसकी हँसी जैसे कहीं गुम हो गई है।
खुद को संभालने की कोशिश
समय के साथ रिद्धिमा ने खुद को संभालने की ठान लिया अब। उसने सबसे पहले अपनी नौकरी बदली, नई जगह जॉइन की और खुद को व्यस्त रखने की भरपूर कोशिश करने लगी। उसका ये बदलाव देखकर घर-परिवार के लोग सोचने लगे कि वह सामान्य हो गई है, पर अंदर उसके मन और दिल में वही पुरानी यादे चलती रहती थी। रात में जब अँधेरा होता तो फिर से उन्हीं पुरानी यादों की बुनियाद पर उसका मन ढह जाता।
वह काम में मन लगाती, लोगों से मिलती, पर हर बैठक में उसकी निगाह कहीं उस दिशा की ओर चली जाती जहाँ आदित्य का चेहरा खिंचता था। उसने खुद को नए कपड़ों में, नए दोस्तों में ढालने की कोशिश की, पर हर नया पैमाना उस एक पुराने नाम से तुलना करता हुआ प्रतीत होता। फिर भी उसने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे वह फिर से अपने रंगों में लौटने लगी, पर उस लौ में एक खाली जगह हमेशा बनी ही रहती थी।
मुलाकात: अचानक और अनसुलझी कहानी
एक दिन तीन साल बाद, काम के सिलसिले में, रिद्धिमा की टीम को एक क्लाइंट मीटिंग के लिए बुलाया गया। कमरे में लोग इधर उधर अंदर- बाहर हो रहे थे, बातचीत के टोन में काम की गंभीरता समझ आ रहा था। जब क्लाइंट का प्रतिनिधि अंदर आया, तो रिद्धिमा की पलकों ने खुद ब खुद उस चेहरे को पहचान लिया। वही चेहरा, वही अजीब सी गंभीरता, वही आंखों में थोड़ी-बहुत थकान।
आदित्य। तीन साल की दूरी ने उनके बीच अनगिनत कहानियाँ और सवाल जमा कर दिए थे, पर मिले तो दोनों की सांसें रुक-सी गईं। मीटिंग के बाद वह पल भी आया जब शब्दों ने अपना रास्ता बनाया और आदित्य ने कहा कि क्या वह बात कर सकता है। कैफेटेरिया की एक कोने वाली मेज़ पर दोनों बैठे तो तीन साल की खामोशी की परतें धीरे-धीरे अब खुलने लगीं।
सच का सामना।
आदित्य की आवाज़ में पहले से कहीं ज्यादा घभराहट थी। लेकिन उसने जो बताया वह सुनने में आसान नहीं था। मंगनी टूटने से पहले उसे पता चला था कि उसके पिता बीमार हैं, बहुत ही गंभीर बीमारी, एक ऐसी बीमारी जिसके इलाज और देखभाल में वह खुद को समर्पित कर देना चाहता था। उसने कहा कि उसने यह फैसला इसलिए लिया ताकि वह रिद्धिमा को उस दर्द में न घसीटे, क्योकि वो उससे बहुत प्यार करता था। वह चुप रहकर अपने घर की जिम्मेदारियों में डूब गया और दुनिया से कटता गया।
हाँ उसने स्वीकार किया कि वह खो गया था—नौकरी, पैसे और रोज़मर्रा की सामान्यता सब कुछ संभालने में असफल रहा, पर उसने साथ में यह भी बताया कि उस बीच उसका प्यार बदलकर कहीं और नहीं गया। यह सुनकर रिद्धिमा के भीतर जो खामोशी थी, वह टूटकर ढह पड़ी। और उसके आँसू बिना आवाज़ के उसकी आँखों से बहने लगे, और उसने महसूस किया कि जो वह सोचती आई थी, धोखा या बेवफाई उसके पीछे कभी-कभी बड़ी मजबूरियाँ भी होती हैं जिन्हें कोई शब्दों में समेट नहीं सकता है।

पनाह के लिए नया मोड़।
उस दिन के बाद, दोनों के बीच धीरे-धीरे वही वही मीठी-सी बातचीत होने लगी, जिसने उन दोनों को कभी उन्हें एक साथ बांधा था। वे दोनों बैठकर अपनी पुरानी यादों को शेयर करते एकदूसरे से। छोटे-छोटे ओवरकॉफी लंच पर मिलते और उन दिनों के टुकड़ों को जोड़ने की कोशिश करते। आदित्य ने बताया कि उसके पिता के जाने के बाद उसने खुद को फिर से समेटना शुरू किया हैं।
रिद्धिमा ने भी अब अपने अंदर की तड़प को ढालकर एक नए तरीके से प्यार करना सीख लिया। दोनों के रिश्ते में अब पुरानी मासूमियत के साथ परिपक्वता भी आई थी। अब वे दोनों जान गए थे कि अब कोई भी फैसला बिना बातचीत के नहीं लिया जाएगा। धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें और बढ़ने लगीं, और उन मुलाकातों में वह सहजपन था जो पलों को स्थायी बना देता ही है।
फिर से नई शुरुआत।
एक साँझ की बात है, जब खेत से लौटती शाम हवा में ठंडक लेकर आई, आदित्य ने पूछा कि क्या वे फिर से एक नई शुरुआत कर सकते है, बिना बड़े वायदों के, सिर्फ एक दूसरे के साथ रहने और समझने के इरादे से। रिद्धिमा ने उसकी आँखों में देखा और बोली कि उनके बीच शुरूआत कभी खत्म ही नहीं हुई थी; वे बस केवल ठहर गए थे। उन्होंने अब तय किया कि अब वे जीवन की राहें साथ चलकर तय करेंगे, छोटे-छोटे दिन बनाकर, एक-दूसरे की मजबूती बन कर। कुछ ही महीनों बाद, दोनों ने परिवार और दोस्तों के बीच एक सादगी भरी रस्म के साथ शादी कर ली।
लोग पूछते हैं कि क्या कोई रिश्ता इतने लंबे समय और दूरी के बाद फिर से बन सकता है। रिद्धिमा अब अक्सर कहा करती है कि प्यार टूट सकता है, गायब नहीं हो जाता। वह एक ऐसी सीढ़ी है जिस पर कभी-कभी कोई उतर जाता है, पर वह वापस चढ़ने का रास्ता बना रहता ही है।
उनकी कहानी यह सिखाती है कि कुछ परिस्थितियाँ रिश्तों को जरूर मोड़ देती हैं, पर सच्चा इरादा और समझ किसी भी दूरी को पाट सकती है।
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